फूल गोभी का बीज तैयार करने की विधि:- खेत पर लगाई हुई गोभी में घूमकर देखते हैं कि इनमें से कौन सा बड़ा फूल है तथा उस पर किसी प्रकार के फीटों का प्रकोप तो नहीं है। फूल के बढ़ने की क्षमता कितनी है, ऐसे पौधों को सैकड़ों की संख्या में सलेक्ट करते हैं तथा इनके पास लैग लगा देते हैं और इनकी खरपतवार भी हटा देते हैं। नीचे से चारों तरफ मिट्टी की गहरी गुड़ाई करके मिट्टी को हटाते हैं तथा उनमें सड़ा हुआ खाद डालकर उपर से मिट्टी लगा देते हैं ताकि इसको अतिरिक्त भोजन मिल जाये। क्यारियों में बार-बार पानी देने से शुरू के पत्ते पीले पड़ जाते हैं, उनको भी हटा देते हैं तथा 10-12 दिन बाद इन सलेक्ट किये हुए पौधों में फूल का आफार देखकर रोग रहित पाये जाने पर उसको बीज के लिए चुन लेते हैं। इन सलेक्ट किये हुए फूलों का तीन तरह से बीज तैयार किया जाता है।
- पहली विधि – इस विधि में जहाँ पौधा खड़ा है, उसके फूल की गोलाई के बराबर
पत्ते तोड़ते हैं तथा फूल के घेरे से मोटी गिट्टियों को छोड़कर छोटी गिट्टियों को बाहर निकाल लेते हैं, जिससे फूल में जगह बन जाती है। पानी देकर फूल को छोड़ देते हैं। 8 10 दिन बाद गिट्टियों में से कुन्दे निकलते हैं वो सघन मात्रा में होते हैं, उनको चाकू की सहायता से मजबूत व बड़े को रखकर बाकी को हटा देते हैं। इस वक्त किसी प्रकार की बीमारी या का पूर्णरूप से ध्यान रखा जाता है। पौधे को ओस से बचाया जाता है, धीरे धीरे इन कुन्दों की उँचाई 20 से 25 सें.मी. हो जाने पर फिर कुन्दों की छटनी करनी पड़ती है तथा रात को ओस से बचाने के लिए चारों तरफ लकड़ी के सहारे सूती कपड़ा लगाया जाता है। एक महिने बाद कुन्दों पर फली आना शुरू हो जायेंगी। फली आने पर का ज्यादा प्रभाव होता है, उस वक्त आवश्यकतानुसार राख लेकर उन पर हल्की हल्की उड़ा दें, पौधों के सहारे नमी कम रखें। 10-12 दिन में ही फलियाँ भूरे कलर में होना शुरू हो जायेंगी। उस वक्त एक फली को तोड़कर नाखून से दबाकर उसमें पानी की मात्रा देखें, पानी की मात्रा ज्यादा हो तो तीन-चार दिन के लिए छोड़ दें अन्यथा काट लें। काटते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि फलियाँ शुरू होने के नौ इंच नीचे से ही काटें व उपर का नौ इंची का हिस्सा काटकर एक भाला नुमा बना लें। चारों तरफ कपड़ा लपेट कर चारे में दबा दें। चार-पाँच दिन बाद हम देखेंगे कि पौधे का पानी सूख जायेगा। तब जाकर बाहर निकालें और तीन-चार दिन तक छाया में सुखा लें। अगर बीज में नमी हो तो एक-दो दिन ज्यादा रख सकते हैं, नहीं तो उपर इण्डोली का तेल (कास्टर आयल) लगाकर किसी बरतन में बन्द करके रखें, आवश्यकतानुसार पौध के समय काम में लें।
- दूसरी विधि- उपरोक्त बताये अनुसार फूल को उसी विधि से सलेक्ट किया जाता है। फूल के बराबर चारों तरफ से पत्ते तोड़ दिये जाते हैं व गिट्टियाँ न निकाल कर किसी धारदार खुरपे की सहायता से फूल का उपर का हिस्सा खरोच दिया जाता है या एक बर्तन में आवश्यकतानुसार गोवर पोल पर फूल पर हल्का लेप कर दिया जाता है। 10-12 दिन बाद जब फूल फुल्ने देना शुरू कर दे व उनकी लम्बाई आठ-दस मीटर की हो जाये तो उपरोक्तानुसार छटनी फरनी पड़ती है। वयस्क टहनियों के बीच में स्पेस बनाना पड़ता है व पौधे के नीचे की मिट्टी की अच्छी गुढाई करके उसके अतिरिक्त सड़ा हुआ खाद डाला जाता है व तने के चारों तरफ मिट्टी लगाई जाती है ताकि तना किसी साइड़ में झुक नहीं जाये। पानी देकर छोड़ दिया जाता है। 20-25 दिन बाद जब फलियाँ शुरू हो जायें, उस वक्त अळ से बचाने के लिए हल्की रा छिड़क कर चारों तरफ लकड़ी के सहारे कपड़ा लगा दिया जाता है। आवश्यकतानुसार पानी दें ज्यादा नमी नहीं रखी जाती है। नमी से व ओस से ही किटाणु या फली छेदक बीमारी लगने का खतरा रहता है। 10-12 दिन में ही फलियाँ भूरे कलर में होना शुरू हो जायेंगी, उस वक्त एक फली को तोड़कर नाखून से दबाकर, उसमें पानी की मात्रा देखें। पानी की मात्रा ज्यादा हो तो तीन-चार दिन के लिए छोड़ दें अन्यथा काट लें। फाटते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि फलियाँ शुरू होने के नौ इंच नीचे से ही काटें व उपर का नौ इंची का हिस्सा काटकर एक भाला नुमा बना लें। चारों तरफ कपड़ा लपेट कर चारे में दबा दें। चार-पाँच दिन बाद हम देखेंगे कि पौधे का पानी सूख जायेगा। तब जाकर बाहर निकालें और तीन-चार दिन तक छाया में सुखा लें। अगर बीज में नमी हो तो एक-दो दिन ज्यादा रख सकते हैं, नहीं तो उपर इण्डोली का तेल (कास्टर आयल) लगाकर किसी बरतन में बन्द करके रखें, आवश्यकतानुसार पौध के समय काम में लें।
- तीसरी विधि-उपर वाली दोनों विधियों से अलग है। इसमें सलेक्शन एक-डेढ़ किलोग्राम फूल का ही किया जाता है। इस विधि में नौ गुणा आठ इंच के कतार में गड्ढे खोदे जाते हैं। इन गड्ढों में थोड़ा खाद व मिट्टी मिलाकर छोड़ देते हैं व सलेक्ट किये पौधों की जड़ को गीला करके किसी नुकीले औजार से उखाड़ते हैं। यह ध्यान रखा जाये कि इस वक्त जड़ें न टूट जायें। उखाड़ने के बाद चारों तरफ के पत्ते तोड़कर फूल को उपरोक्त खड्डों में लगायें। चारों तरफ मिट्टी भर के दबा दें व इतना पानी डालें कि पौधे की जड़ से दो तीन इंच नीचे तक व चारों तरफ नमी हो जाये। दूसरा पानी 24 घंटे बाद दें। तने के चारों तरफ मिट्टी लगायें। 10-12 दिन बाद जब फूल कुन्दे देना शुरू कर दे व उनकी लम्बाई आठ-दस सेंटी मीटर की हो जाये तो उपरोक्तानुसार छटनी करनी पड़ती है। वयस्क टहनियों के बीच में स्पेस बनाना पड़ता है व पौधे के नीचे की मिट्टी की अच्छी गुड़ाई कर के उसमें अतिरिक्त सड़ा हुआ खाद डाला जाता है व तने के चारों तरफ मिट्टी लगाई जाती है ताकि तना किसी साइड़ में झुक नहीं जाये। पान देकर छोड़ दिया जाता है। 20-25 दिन बाद जब फलियों शुरू हो जाये, उस वक्त अ से बचाने के लिए हल्की राख छिड़क कर चारों तरफ लकड़ी के सहारे कपड़ा लगा दिया। जाता है। आवश्यकतानुसार पानी दे, ज्यादा नमी नहीं रखी जाती है। नमी से न ओस से ही फिटाणु या फली छेदक बीमारी लगने का खतरा रहता है। 10-12 दिन में ही • फलियाँ भूरे कलर में होना शुरू हो जायेंगी। उस वक्त एक फली को तोड़फर नाखून से दबा कर उसमें पानी की मात्रा देखें, पानी की मात्रा ज्यादा हो तो तीन-चार दिन के लिए छोड़ दे अन्यथा फाट ले। फाटते समय यह ध्यान रखना जरूरी है कि फलियों शुरू होने के नौ इंच नीचे से ही काटें व उपर का नी उंची का हिस्सा काटकर एक माला नुमा बना है। चारों तरफ कपड़ा लपेट कर चारे में दबा दें। चार-पाँच दिन बाद हम देखेंगे कि पौधे का पानी सूख जायेगा, तब जाकर बाहर निकालें और तीन-चार दिन तक छाया में सुखा लें। अगर बीज में नमी हो तो एक-दो दिन ज्यादा रख सकते हैं नहीं तो उपर इण्डोली का तेल (कास्टर आयल) लगाकर किसी बरतन में बन्द करके रखें, आवश्यकतानुसार पौध के समय काम में लें।