खींफ की खेती

खींफ जंगली पौध है। यह प्रायः गहरे नाले, पहाड़ी या खाली जमीन में वर्षा काल में उगता है तथा कूंचे की तरह फैलता है। इसमें एक-डेढ़ मीटर तक के कुन्दे होते हैं, जिनके बीच में भी फुटान होती है। उपर से बहुत जगह घेरते हैं। बसन्त ऋतु में जाकर हल्के छोटे फूल आते हैं तथा उनमें फलियाँ बनना शुरू हो जाता है। इसको ऊँट, भेड़, बकरी खाते हैं। इनमें सफेद दूध निकलता है जो दवा के काम आता है तथा फलियां सब्जी के काम में ली जाती हैं, जो बहुत लाभकारी होती है। यह वातनाशक है। शरीर में चोट के पुराने दर्द पर बांधता है, इसमें दूध निकलता है जो घाव को भरता है। यह फैज दूर करती है तथा खून को शुद्ध करता है।

1. प्राय: जो पशु दूध के समय उछलते हैं, उसके लिए किसान खॉफ की टहनियों को फूटकर पानी में उबालकर ठण्डा करके उन गाय, भैंस, बकरियों के थनों पर तीन-चार दिन तक सुबह-शाम लगाते हैं। इसके पानी से गादी में खुजाल होती है, जिससे जानवर दूध निकालते समय उछलते नहीं हैं।

2. किसान वर्षा ऋतु में अपने मिट्टी के घरों पर पशुओं के बाड़ों पर, झोंपों पर इनका घेरा बनाकर तान देते हैं जिससे वर्षा के पानी से बचते हैं।

3. मिट्टी के बर्तन बनाने वाले कुम्हार, नीलगर, धोबी आदि जातियाँ जिनके यहाँ दिन भर भट्टी चलती है, वो खींफ को काटकर सुखाते हैं तथा भट्टी व ओवे आदि में काम लेते हैं।

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