पपीता हमारे देश में प्राचीन काल से ही बोया जाता है। इसका पेड़ जल्दी बढ़ने वाला व अन्दर से जालीनुमा होता है। ज्यादा पानी के प्रभाव से गलकर टूट जाता है। इसके पत्ते चारों तरफ एक मीटर का डण्ठल छोड़कर कटे हुए गोलाकर में रहते हैं। इसका फल शुरू में हरा एवं ने पर पीला होता है। हरे फल को सब्जी के काम में लिया जाता है तथा पके हुए फल को बीज कालकर खाया जाता है। इसके सेवन से आमाशय बलवान होता है, अपच दूर होती है, भूख बढ़ती है, गैस आदि विकार नहीं होते हैं, कैंज नहीं रहती, कफ, खासी व पेट दर्द के लिए रामबाण है।
- भूमि:- पपीता प्रायः हर प्रकार की भूमि में लगाया जा सकता है। ज्यादा नमी व ज्यादा ठण्ड इसके लिए उपयुक्त नहीं है। यह उत्तर भारत के बजाय दक्षिण भारत में ज्यादा होता है।
- बीज:- इसका बीज काली मिर्च की तरह दिखाई देता है, उपर से काला व धारियाँ होती हैं। ज्यादा ठोस नहीं होता एवं ज्यादा अवधि तक रूक नहीं सकता। एक बीज से केवल एक पेड़ तैयार होता है तथा बीज की अंकुरित क्षमता 70 प्रतिशत होती है। देशी बीज में 30/70 के करीब नर / मादा होते हैं।
- जमीन की तैयारी : पपीते के लिए 8 गुणा 8 के अन्तराल पर खड्डा खोदा जाता है जो डेढ़ फुट गहरा व एक फुट चौड़ा होता है। खड्डे के उपर के परत की 6 इंच मिट्टी अलग रख दें व नीचे की एक फिट मिट्टी की खड्डे के चारों तरफ डोली बना दें। 6 इंच मिट्टी जो अलग रखी थी उसमें सड़ी हुई गोबर की खाद मिलाकर खड्डे को भर दें।
- पौध तैयार करना:- गीले गोबर से छ: इंच चौडी व नौ इंच गहरी कुंडी बना लें व सात-आठ दिन धूप में सुखने के बाद उसमें 60 प्रतिशत मिट्टी व 40 प्रतिशत गोबर के खाद को मिलाकर आवश्यकतानुसार मिलाकर भरें तथा कुंडी के उपर वाली सतह पर एक इंची में कोकोपिट (नारियल का चूरा) भरकर पूरा पानी से भरकर छोड़ दें।
- बीज अंकुरित करना :- पपीते के बीज को छ: सात घंटे पानी में भिगोने के बाद पानी से निकालकर अखबार पर सुखायें। एक घण्टे बाद सूती कपड़े में लपेट कर चारों तरफ उनी कपड़े में लपेटें, उसके पश्चात एक कार्टून लेकर उसके पैदे में एक मिरर (ग्लास) रखे उस पर उनी कपड़े में लिपटा बीज रख दें व अन्दर एक 100 वॉट का बल्ब जलाकर कार्टून को चारों तरफ से बन्द कर दें। 8-10 घण्टे में बीज अंकुरित हो जायेगा। इस अंकुरित बीज को एक-एक उठाकर पूर्व में तैयार गोबर की कुडियों में हल्का सा दबा कर रख दें। कोकोपिट की नमी के कारण तीन दिन में ही दो-दो पत्तियाँ निकलना शुरू हो जायेंगी। इसे चिड़ी व गिलहरी से बचाव करें। जब पौध 20 दिन की हो जाये तो उठाकर प्रत्येक खड्डे पर रखें व गोबर की कुंडी के नाप की मिट्टी हाथ से निकाल कर खड्डे में कुंडी फिट कर दें। चारों तरफ मिट्टी दबाकर पानी देकर छोड़ दे व सात आठ दिन से पानी देते रहें। छ: सात महिने में फल आने शुरू हो जायेंगे। पपीते का दूध औषधी के काम आता है। पपीते के दूध को पेपेन कहते हैं। यह बहुत महँगा है, इसके दवा में उपयोग लाये जाने वाले केप्सूल के केप बनते हैं। ज्यादा जमीन में बगीचा लगाने वाले किसान इसका दूध निकलवाकर भारी मुनाफा कमाते हैं। इसका जीवनकाल तीन साल का होता है।