मूली हमारे देश में प्राय: सभी जगह बोई जाती है। इसके लिए खाद वाली बालू मिट्टी अच्छी रहती है। इसकी फसल अगस्त से मार्च तक रहती है। केवल उत्तर भारत में इसकी फसल बारह मास चलती है। इसका जीवन 70 से 75 दिन का होता है। मूली बीज डालने के 45 दिन में तैयार हो जाती है।
- जमीन की तैयारी – मूली के लिए गहरी जुताई की आवश्यकता होती है। जितनी गहरी जुलाई होती है मूली उतनी ही लम्बी होती है। इसके लिए 50 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टर गोबर की सड़ी खाद डालकर या कम्पोस्ट खाद डालकर अच्छी तरह फैला दें व तीन-चार जुताई करके आलू की क्यारियों की तरह क्यारियाँ बनायें।
- बीज डालना:- इसका बीज मूंग के दाने से हल्का तथा कत्थया रंग का होता है। इसका बीज 5 से 6 किलो प्रति हैक्टर लगता है। क्यारियों में डोलियाँ बनाकर जमीन से दो इंच उपर व 2-2 इंच के अन्तराल पर दोनों तरफ मूली के बीज की चुभाई होती है। चुभाई के तुरंत बाद पानी दिया जाता है। इसका बीज 3-4 दिन में उगना शुरू हो जाता है, उस वक्त पानी दिया जाता है। चुभाई के 15 दिन बाद खरपतवार निकाली जाती है व पौधों के सहारे नालियों से मिट्टी लेकर लगाई जाती है। सात-आठ दिन के अन्तराल पर पानी दिया जाता है।
- मूली उखाड़ना:- 40 से 45 दिन बाद मूली जब पत्तों के नीचे दिखाई देने लग जाये व हाथ से पकड़ने काबिल हो जाय, तब इसको उखाड़ कर, एक दो पीले पत्ते तोड़कर इसको धोते हैं तथा बिक्री के लिए मण्डी में भेजते हैं।
- बीज तैयार करना :- जिस जगह मूली का बीज तैयार करते हैं, उस जमीन को खोदकर थोड़ा खाद डालकर डोलियाँ बनाते है तथा लम्बी व सफेद मूली को उखाड़कर उसके पत्ते मूली के उपर से दो इंची रखकर तोड़ देते हैं तथा नीचे के पेड़ी के पास से 4 5 इंची मूली रखकर तोड़ देते हैं। इसको पूर्व में बनाई हुई क्यारियों की डोलियों में ढ़ाई तीन फुट के अन्तराल में लगाते हैं तथा लगाते ही क्यारी की नालियों में पानी भर देते हैं। प्रत्येक पानी सात-आठ दिन के अन्तराल पर बीज पकने तक दिया जाता है। सात आठ दिन बाद कुन्दे फूटते हैं इनमें से मजबूत कुन्दे रखकर बाकी कुन्दों को तोड़ देते हैं। जब कुन्दों की उंचाई ढाई-तीन फुट हो जाये तो इनकी शाखायें चलती हैं व इनका पौधा मोगरी की तरह बन जाता है व सफेद फूल आते हैं व मोगरी की तरह ही फलियाँ लगती हैं। दो महिने में इसका बीज पक कर तैयार हो जाता है। अगर उस वक्त अळ दिखाई दे तो तम्बाकू व गुड़ का घोल बनाकर चार गुना पानी में मिलाकर स्प्रे करें। जब बीज पूर्णरूप से पक जाये तो उपर से सरसों की तरह काटकर इसके भारे बना लें व दो-तीन दिन सुखाने के बाद लकड़ी के डण्डे की सहायता से झाड़कर बीज निकालकर साफ कर लें।