करेला की खेती

हमारे देश में करेला आदिकाल से चला आ रहा है। पहले किसानों के खेतों के चारों तरफ डोली पर काँटेदार छाड़ियाँ होती थी, जो आवारा पशुओं से खेत की रक्षा के लिए लगाई जाती थी। उसमें यह प्राकृतिक रुप से उगता था। किसान इसकी सब्जी बनाते। यह पकने पर लाल होता था व अपने आप ही फट जाता था। बच्चे इसको तोड़कर खाते थे। इसका बीज तुरई की तरह बड़े व चपटे होते हैं, रंग हल्का बादामी होता है। हमारे कृषि वैज्ञानिकों ने इसके बीज को क्रास कर उन्नत बीज बना दिये, जिनके द्वारा उत्पादन किये हुए करेले आज बाजार में हैं।

  1. उपयोगिता :- कच्चा करेला सब्जी बनाकर खाने के काम आता है। पके फो सलाद की तरह खाया जाता है। इसका स्वाद कसैला होता है। लाल करेले को सुखा कर दवा के रूप में भी काम में लेते हैं। प्राय: यह फल रस, मधुमेह के रोगी के रक्त सर्फरा को कम करता है व पीलिया, चरम रोग आदि के लिए भी दवा के रूप में काम आता है।
  2. भूमि का चयन:- यह प्रायः सब्जी की तरह भूमि में बोया जाता है। इसके लिए खाद युक्त मिट्टी होना आवश्यक है। 50 से 60 क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से खाद डालना चाहिए।
  3. जुताई – बुवाई :- खाद डाली हुई जमीन की दो-तीन बार जुताई करके नालियों बनाई जाती हैं। नालियों के किनारे पर दोनों तरफ एक-एक फिट की दूरी पर बीज बोया जाता है। यह ध्यान रखा जाये कि बीज लगाते वक्त बीज पर मिट्टी ज्यादा न हो, मिट्टी ज्यादा होने पर अंकुरित लेट होता है।
  4. खरपतवार नियंत्रण:- करेले के पौधे के चार-पाँच पत्ते होते ही नालियों में खरपतवार निकालना शुरू कर दें व तने के सहारे मिट्टी की दाव लगायें। एक-दो दिन बाद दूसरा पानी दें। जब पौधा बेल बनना शुरू कर दे तो झाड़ियाँ लगाकर या रस्सियों के सहारे बेल को उपर चढ़ायें। बेल एक-डेढ़ मीटर हो जाये तो 5-7-9-11वाँ पत्ता तोड़ें क्यों कि यहाँ से ब्रांचें फूटना शुरू होगी। सब्जी के लिए करेले के फल को पकायें नहीं ज्यादा पकने पर सब्जी के काम नहीं आता। बेलों पर सफेद मच्छर या एफिड (अळ) लगने पर चूना व राख समान मात्रा में मिलाकर छिड़काव करें। इसका जीवन काल चार माह का है।

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