भिंडी की खेती

ग्रीष्मकाल की सब्जियों में भिंडी का मुख्य स्थान है। यह पौष्टिक सब्जी है। इसमें विटामिन ए, सी, पाये जाते हैं। प्रोटीन व चिकनाई ज्यादा होती है।

  1. भूमि व जलवायु हर प्रकार की जलवायु में उगाई जा सकती है। लेकिन जिस भूमि में जीवांश अधिक मात्रा में हो, मिट्टी दोमट हो व जल निकासी का साधन हो इसकी खेती के लिए उपयुक्त है।
  2. खेल की तैयारी – खेत की अच्छी तैयारी के लिए पहले सिंचाई करें, जमीन ओट जाने के बाद दो बार जुताई करवायें। फिर पाटा लगाकर जमीन को छोड़ दें। जमीन खुली रहने पर जमीन के अन्दर जो केंचुए हैं, उनको जानवर खा जाते हैं। अत: खुली ना छोड़ें। इसके बाद सौ क्विंटल प्रति हैक्टर खाद डाल कर फैला दें। अगर मिंडी छिड़काव से बो ली है तो 20 किलो बीज प्रति हैक्टर के हिसाब से छिड़क दें व उत्तर दक्षिण व पूर्व पश्चिम दो जोत लगा दें व पाटा फेरकर क्यारियां बना लें। अगर बीज हर से बोना हो तो 15 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से बीज डालें। जुताई के बाद क्यारियां बना लें।
  3. खरपतवार नियंत्रण – वर्षाकालीन फसलों में अधिक खरपतवार पनपते हैं। अतः खरपतवार को जल्दी ही निकालें। तीन बार निराई गुड़ाई करें। सर्दी की फसल में दो तीन बार निराई गुड़ाई करें, जड़ों के पास पानी जमा नहीं होने दें।
  4. रोग व नियंत्रण – इसमें पत्ते सिकुड़ने की बीमारी ज्यादा होती है। चर्मकारों के कुण्ड का पानी लाकर छिड़कें, इसमें बाजरे का आटा साथ में आक का दूध, टीकर की छाल आदि होती है। जो इनके पत्ते के नीचे के कीटाणु को मारते हैं। किटाणुओं को मार देने के पत्तों के रस नहीं चूसते, जिससे पत्ते अच्छे हो जाते हैं।
  5. तुड़ाई- ग्रीष्मकालीन फसलों में बुवाई के डेढ़ दो महिने बाद व वर्षाकालीन फसलों में 45 दिन बाद भिंडी तुड़ाई के लिए तैयार हो जाती है। तुड़ाई समय पर करें अन्यथा फल आकार में बड़े हो जाते हैं। रंग फीका पड़ जाता है, बाजार में इनका भाव कम मिलता

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