टमाटर ऐसी सब्जी है जिसे साल भर लगाया जा सकता है। इनके बिना कोई भी सब्जी स्वादिस्ट नहीं बनती, इसकी मांग बारह महिने रहती है। यह सब्जियों के साथ मिलाने, सूप, सलाद व चटनी इत्यादि के काम आता है।
- भूमि व जलवायु – इसकी बुवाई के लिये काली दोमट व बालू दोमट दोनों ही प्रकार की मिट्टी अच्छी रहती है। जीवांश खाद इसके लिये अधिक योग्य होती है। क्षारीय व लवणीय भूमि में इसकी पैदावार न के बराबर होती है। पानी की निकासी के लिये इसमें उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।
- पौधे को तैयार करना इसका बीज गोल, चपटा व हल्के सफेद रंग को होता है। एक हैक्टर में 800 ग्राम बीज की आवश्यकता होती है। इसकी पौध करते समय जमीन की जुताई कर क्यारियां बना लें तथा उस पर केंचुए द्वारा तैयार की गई मिट्टी डालें। आवश्यकतानुसार बीज का छिड़काव करें, छिड़के हुये बीज को अंगुलियों से मिलाकर पानी दें। पानी में बीज तैरने पर उस पर मिट्टी डालकर दबा दें, 8 से 10 दिन में इसकी पौध उगने लगती है। उगते समय चिड़ियों को ध्यान रखें।
- खरपतवार जब पौध तैयार हो जाये तो खरपतवार निकालना जरूरी है। इससे तने मुड़ने का भय नहीं रहता।
- भूमि तैयार करना – टमाटर के लिए खेत को हल से जुताई कर धूप में तपने दें, ऐसा दो-तीन बार करने पर जमीन पोली हो जायेगी, उस पर पाटा फेर कर छोड़ दें, पाटा नहीं फेरने से केंचुए को कौवे खा जाते हैं। बाद में 100 क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से सड़ी हुई गोबर की खाद डालें तथा कम्पोस्ट खाद तैयार की हुई हो तो उपरोक्त का 1/4 भाग डालें, इसे जमीन पर फैलायें तथा एक बार हल से जोत कर दें, इस प्रकार जमीन तैयार होने पर उसमें क्यारियां बना लें।
- पौध का स्थानान्तरण करना – तैयार की गई पौध को उखाड़ कर उसकी सौ सौ की गड्डियाँ बनाकर तैयार करें। फिर उसकी मिट्टी झाड़कर नीम की पत्तियों के रस के पानी से पुलाई करें तथा 40 गुणा 30 से.मी. की दूरी पर प्रत्येक पौध को लगायें। पौध लगाते समय सड़ी व गली हुई पौध को निकाल दें तथा रोपाई के बाद हल्की सिंचाई करें।
- खरपतवार अलग करना – वर्षाफालीन फसलों में अन्य फसलों की अपेक्षा खरपतवार अधिक होती है। अत: इसको प्रारम्भिक अवस्था में ही निकाल दें. वर्षाकालीन फसलों में फसल में निराई व गुड़ाई तीन-चार बार करें। सर्दकालीन फसल में दो तीन बार करें, निराई गुड़ाई के समय पौधे के तने के पास मिट्टी अवश्य लगायें।
- पानी की मात्रा – पहला पानी रोपाई के तुरन्त बाद दें। फिर दो-तीन दिन के अन्तराल पर पानी दें। सर्दी में सिंचाई की अधिक जरूरत अन्तराल पर पानी दें। है। अतः 15 दिन के अन्तराल पर पानी दें।
- तुड़ाई- इसके फल 60 से 70 दिन में लग जाते हैं। इसके फल गोल व लम्बे होते हैं। पहले कच्चे फलों का हरा रंग होता है तथा पकने पर ये लाल हो जाते हैं। इनका वजन 180 से 180 ग्राम तक होता है। इनको पूरे पके हुए तोड़ने पर दूर नहीं भेजा जा सकता, दूर भेजने पर अघपक्का तोड़ा जाता है।
- रोग व नियंत्रण – इसमें पत्ते सड़ने की बीमारी ज्यादा होती है। पत्ते सिकुड़ने पर चर्मकारों के कुण्ड, जहां चमड़े के किटाणु साफ किये जाते हैं का पानी लाकर छिड़कें। इसमें बाजरे का आटा व छाछ, आक की दूध, टीकर की छाल आदि मिलाकर डाला जाता है।