फूल गोभी की खेती

गोभी चार प्रकार की होती है। फूल गोभी, पत्ता गोभी, गांठ गोभी और ब्रोफली। ये सर्वकालीन सब्जियों में प्रमुख है, इनमें फूल गोभी का प्रमुख स्थान है, इसे अधिकांश लोग पसन्द करते हैं क्योंकि इसमें प्रोटीन, खनिज व लवण की मात्रा पायी जाती है। इसमें विटामिन ए और सी की मात्रा भी पाई जाती है।

  1. भूमि तथा जलवायु:- फूल गोभी के लिये भरपूर जीवांश वाली दोमट भूमि उपयुक्त रहती है। वैसे इसे कई प्रकार की भूमि में भी उगाया जा सकता है जिसमें पानी संरक्षण की क्षमता ज्यादा हो तथा पानी निकास के अच्छे साधन हो। इसमें अधिकतम तापमान 20 डिग्री सेन्टीग्रेट होना चाहिए।
  2. किस्में – कुआरी, फातकी, पौसी, कापी व देशी 5 प्रकार की किस्में देशी हैं। पौसी, माशी, चिलायती हाई ब्रीड में भी तीन फसले ली जा सकती है जो सीड कम्पनी अपने अलग-अलग नाम से बेचती हैं। उत्तर भारत में फूल गोभी साल भर बोई जाती है।
  3. पौधे तैयार करना :- फूल गोभी की पौधे तैयार करने के लिए 6 गुणा 3 की क्यारियां तैयार करें ये क्यारी ऊंचाई पर जिसमें पानी भरा हुआ न हो व निकालने की व्यवस्था हो। फिर क्यारियों की सतह पर गोभी का बीज छिड़क कर हाथों की उंगलियों से मिला दें। बीज अधिक गहरा न गिरे क्योंकि उगने में समय लग जाता है तथा इसके ऊपर पाटा या थाली न फिरायें इससे पपड़ी लग जाती है तथा बीज को उगने नहीं देती है। फिर पानी को इस प्रकार ऊपर की सतह सूखने पर पानी देते रहें, चार-पांच दिन बाद पौध सारी निकल जायेगी। पौध निकलते समय चिड़िया खा जाती है। अत: 5 दिन तक रखवाली में बैठने की व्यवस्था हो। 20 दिन बाद खरपतवार निकाल दें व पानी देते रहें। 20 दिन में पौध तैयार हो जाती है। पौध को उखाड़ कर हल्की मिट्टी झाड़कर लगायें।
  4. पौध का स्थानान्तरण करना :- पौधशाला से पौध उखाड़ते समय सीधी खींचे इससे पौध टूटती नहीं है तथा 100 तक की गड्डियां बनाकर रख लें। पौधशाला से पौध उखाड़कर उसकी मिट्टी साफ कर लें व नीम की उबाली हुई पत्तियों के रस को ठंडा होने के बाद जड़ों को मिलावें, पानी झर जाये तो क्यारियों में लगाना शुरू कर दें। पौध को अधिक समय तक धूप में न रखें तथा शाम चार बजे बाद व सुबह 8 बजे पहले पौध लगावें। क्यारियां प्लेन या डोलीवाली आलू, अदरक की तरह हो, इसकी 30 से 40 से.मी. के अन्तराल में हो। लगाने के तुरन्त बाद ही पानी शुरू कर दें तथा पानी पूरी क्यारी में फैल जाने दें, ज्यादा भरी हुई क्यारी न हो। उस तरह 2 से 3 दिन तक पानी की नमी रहे। दो-तीन पानी देने के बाद जब नये पत्ते शुरू हो जायें, तब पानी 6-7 दिन बाद दें व लगाने के 20 दिन बाद खरपतवार निकालें।
  5. खरपतवार निकालना :- फूलगोभी में खरपतवार निकालना व पेड़ के तने के पास मिट्टी लगाना आवश्यक है। खरपतवार से इन पेड़ों का विकास नहीं होता व मिट्टी चढ़ाने से फूलगोभी का तना मजबूत होता है। जब तना मजबूत होगा तो फूल भी ठोस सफेद बड़ा आकार का होगा।
  6. खाद डालकर जमीन तैयार करना :- फूलगोभी लगाने से पूर्व 100 से 120 क्विंटल प्रति हैक्टर सड़ी हुई गोबर की खाद डालें, तीन-चार जुताई होने के बाद ही खाद डालें तथा फैला कर पाटा फेरें व क्यारियां बनाये, कम्पोस्ट खाद फूल गोभी के लिए गोबर की खाद से 1/4 भाग होनी चाहिए।
  7. केंचुए:- केंचुए प्राय: सभी प्रकार के अनाज, दलहन, तिलहन व साग-सब्जियों के लिए अत्यन्त लाभकारी है जो दिन रात किसान के खेत में लगे रहते हैं व मिट्टी खाकर मिट्टी की गोलियां बना देते हैं। इसमें नाइट्रोजन की मात्रा 6 प्रतिशत होती है तथा पानी सोखने की शक्ति होती है। इस खाद से फूल गोभी स्वादिष्ट सफेद व अधिक वजन वाली होती है तथा अधिक समय तक बिना फ्रीज के ठहरती है।
  8. निराई-गुड़ाई:- फूल गोभी की निराई गुड़ाई 15 दिन के अन्तराल पर होनी चाहिए। जमीन जितनी नमी वाली व पोली होगी जड़े अधिक गहराई पर जायेगी। पेड़ ठोस होगा तथा स्वस्थ होगा तथा केंचुआ भी अपनी क्रिया जल्दी करेगा क्योंकि ठोस जमीन में इसकी क्रिया अधिक नहीं होती।
  9. फूलगोभी में पानी की बहुत आवश्यकता होती है। इसमें शुरू में 2 से 3 दिन तक व बाद में 5-6 दिन से पानी दें। जब फसल तैयार हो, फूल जल्दी लेने हों तो प्रतिदिन भी पानी दिया जा सकता है। सर्दी में पानी की मात्रा कम कर के 15 दिन कर दें।
  10. रोग व नियंत्रण – फूल गोभी में पत्ता छेदक बीमारी होती है तथा सर्दी में इसके फूल पर स्टाम्प की श्याही की तरह के नीले घच्चे लग जाते हैं। इन पर नियंत्रण अति आवश्यक है। पत्ता छेदक बिमारी से पूरे पत्तों में छेद हो जाते हैं। इनको बचाने के लिए देशी परम्परागत औषधि – राख 2 किलो, कली 2 किलो इन दोनों को अलग अलग पीसकर एक जगह कर लें व मिलाकर एक सख्त गत्ता-पुठ्ठा पर रखें, पौधों के पास जाकर एक पाईप से फूंक मारें, हल्के हल्के पत्तों पर छिड़क दें। धूप के समय ही इससे सारे किटाणु चार पांच दिन में खत्म हो जायेंगे। यह छिड़काव एक माह में दो बार करें। फूल पर स्टाम्प श्याही के रंग, बादल ज्यादा होने पर लगते हैं। उनसे बचाने के लिए गोभी के पत्ते ही तोड़कर उस पर उलट दें। यह बिमारी ओस का पानी पड़ने से लगती है। जब ओस का पानी पत्तों से रूक जायेगा बिमारी नहीं होगी। बड़े फूलों के पत्ते तोड़कर फूल प पर रख दें।
  11. तने सड़ना – फूलगोभी के तने सड़ने लगते हैं तथा पेड़ पर पत्ते पीले पड़ जाते हैं। इसके बचाव के लिए तम्बाकू की मिट्टी 500 ग्राम, साबुन के घोल का पानी 1 किलो ग्रम, इनको 3 किलो ग्राम पानी में मिलाकर खूब घोलें व छान लें। छाने हुए पानी को एक बीघा पर छिड़के, तने पर पानी जाना आवश्यक है। इस प्रकार इस रोग पर भी नियंत्रण हो जायेगा।
  12. सर्दी का प्रकोप- इस पर सर्दी का प्रकोप ज्यादा नहीं होता, गर्मी का होता है। जितनी सर्दी पड़ती है, फूल ठोस व सफेद रहता है। ओस के पानी का खतरा रहता है जो इसके रंग को बदलता है। ओस के पानी से बचाने के लिए गोभी का एक पत्ता तोड़कर फूल पर डाल दें जिससे ओस का बचाव हो।

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