तिल की खेती

तिल प्राय: संसार के सभी भागों में पैदा होता है। हमारे देश में उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, तमिलनाडू में बड़े पैमाने पर उगाया जाता है। ये सफेद व काला दो प्रकार का होता है।

  1. मिट्टी – इसके लिए बालुई दोमट मिट्टी अधिक उपयुक्त होती है। दक्षिण भारत में भी इसको उगाया जाता है।
  2. खाद इसके लिए 50 से 60 किंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से खाद की आवश्यकता होती है। कम्पोस्ट खाद इसकी 1/4 भाग इसके लिए काफी है।
  3. सिंचाई खरीफ की फसलों के लिए सिंचाई की आवश्यकता नहीं होती है। रवी की फसलों में दो तीन सिंचाई की आवश्यकता होती है। 45 इंच वर्षा वाले क्षेत्रों में सिंचाई की आवश्यकता नहीं पड़ती है।
  4. बुवाई का समय – इसकी बुवाई का समय अलग-अलग है। उत्तर प्रदेश में इसकी खेती खरीफ में व दक्षिण भारत में रवी में की जाती है।
  5. बीज की मात्रा – इसमें बीज की मात्रा तीन से चार किलो प्रति हैक्टर होती है। यहफसलों में मिलाने पर से 3 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से बोई जाती है।
  6. निराई गुड़ाई इसमें निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। मिलवा फसल बोने पर निराई की आवश्यकता होती है।
  7. कटाई – उत्तर भारत में इसका समय सितम्बर, अक्टूबर व दक्षिण भारत में मार्च, – अप्रैल है। इसके उपरी भाग को काटा जाता है व उसकी छोटी-छोटी पूलियां बांधकर धूप में सुखा दी जाती है। सूखने पर तिलों को झाड़कर फिर सूखने के लिए रख दिया जाता है। इस प्रकार बार-बार सुख-सुखा कर झाड़ा जाता है।
  8. शेष अवशेष – शेष अवशेष जलाने के काम में आता है।
  9. उत्पादन – 25 से 35 किलो प्रति हैक्टर उत्पादन होता है।
  10. निर्यात – इसका तेल निकाला जाता है जिसमें पचास प्रतिशत तेल व पचास प्रतिशत खल होती है। तेल खाने में काम आता है। इसका विदेशों में निर्यात होता है। खली पशु आहार में काम आती है।
  11. आयात – हमारे देश में वर्षा अच्छी नहीं होने पर फसल कमजोर होती है। तेल की पूर्ति नहीं हो पाती है। ऐसी स्थिति में तेल का आयात करना पड़ता है।

Leave a Comment