सरसों की खेती

सरसों जातिय पौधों में सरसों, राई, तारा-मीरा व तोरिआ की गणना होती है। इन चारों फसलों का ही तेल निकाला जाता है व मसालों में काम लिया जाता है। इसके तेल की प्रतिशतता अलग-अलग होती है।

  1. मिट्टी :- इसके लिए काली दोमट व बालू दोमट मिट्टी सर्वोत्तम रहती है। तोरिआ व तारा-मीरा के लिए हल्की जमीन अच्छी रहती है। पानी निकास के लिए उत्तम व्यवस्था होनी चाहिए।\
  2. खाद:- इसमें खाद, खार आदि हरे खादों पर खाद की अवश्यकता नहीं होती है। लेकिन जहां इनका प्रयोग नहीं होता है वहाँ 20-25 गाड़ी गोबर की खाद या इसका 1/4 भाग कम्पोस्ट खाद भी काफी रहता है। केंचुए की खाद / तैयार मिट्टी इसके लिए लाभकारी सिद्ध होती है।
  3. सिंचाई तराई वाले क्षेत्रों में सिंचाई नहीं करनी पड़ती, अन्य जगह दो से तीन सिंचाई करनी पड़ती है। इसकी सिंचाई दिसम्बर और जनवरी में होना अति आवश्यक है। उस समय पाला पड़ता है, अत: पानी देने पर पाला से बचाव किया जा सकता है।
  4. बुवाई का समय सितम्बर के अंतिम दो सप्ताह से अक्टूबर तक इसकी बुवाई के लिए अच्छा रहता है। इसके बाद बोई जाने वाली फसलों में सर्दी व रोग लगने का खतरा रहता है।
  5. बीज की मात्रा- राई 2 किलो प्रति हैक्टर, सरसों 4 किलो प्रति हैक्टर, तोरिया व तारा-मीरा की 4-4 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से डाला जाता है। अन्य फसलों में मिलाने पर इसकी मात्रा 500 ग्राम प्रति हैक्टर कर दी जाती है। ये फसलें अन्य फसलों के साथ भी बोई जाती है।
  6. निराई-गुड़ाई- इसकी फसल में निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। इसमें पौधे की दूरी कम होने पर हर दस इंच पर पौधे को रखा लिया जाता है, बाकी पौधों की छटनी कर दी जाती है। ज्यादा मात्रा में पौधा एक ही जगह होने से फसल कमजोर हो जाती है। अत: छटनी करके व उसके स्थान पर अगर खरपतवार हो तो उसे भी निकालना आवश्यक है।
  7. कटाई पर फसलें- सरसों, तोरिया, तारा-मीरा व राई इनकी कटाई मार्च में की जाती है। कटाई में उपरी भाग जहां फलियां होती हैं उसको काट लिया ज शेष भाग खड़ा रह जाता है। कटे हुए भाग को सुखाने के बाद इकट्ठा मशीन या जानवरों से निकलवा लेते हैं।
  8. शेष अवशेष – शेष अवशेष जलाने के काम आते हैं। जब हमारी जमीन में सफेद लट का प्रकोप हो जाता है। सरसों आदि को अवशेषों को जमीन पर बिछाकर तेल छोड़कर जला देते हैं। इससे सफेद लट खत्म हो जाती है तथा राख खाद का कार्य करती है। अगर सरसों की लड़ी को एक साल तक सड़ाकर रख लें तो श्रेष्ठ खाद बनती है।
  9. उत्पादन –  इनका उत्पादन 25 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से होता है। सिंचित में उत्पादन और भी ज्यादा हो सकता है।
  10. बाजार भाव – इनके बाजार भाव 4000 से 4500 रूपये प्रति क्विंटल तक चल रहे। हैं जो कि तिलहन में बहुत ही अच्छे हैं।
  11. निर्यात – इसका तेल निकाल कर खाने के काम लिया जाता है। फसल अच्छी नहीं होने पर तेल का आयात किया जाता है। फसल अच्छी होने पर निर्यात किया जाता है।

Leave a Comment