मटर की खेती

मटर की मूल उत्पत्ति भारत ही माना जाता है। यहां पर उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, पंजाब, बिहार व राजस्थान प्रान्तों में इसकी खेती की जाती है।

  1. मिट्टी मटर को हर प्रकार की मिट्टी में बोया जा सकता है। परन्तु पानी निकास वाली काली दोमट मिट्टी इसके लिए अधिक उपर्युक्त रहती है। इसमें नमी अधिक समय तक रहती है, जिससे पौधे में पानी की कमी नहीं आती व पौधा अच्छा बन जाता है।
  2. खाद:- चने की ही जाति का होने के कारण इसमें भी अधिक खाद की आवश्यकता नहीं होती है। बारानी खेती में खाद न दें परन्तु जहां पर पानी का साधन हो वहां पर खाद 50 क्विंटल प्रति हैक्टर के हिसाब से डालें। कम्पोस्ट खाद व केचुएं की मिट्टी से पौधा अच्छा तैयार होता है।
  3. सिंचाई:- मटर के लिए दो सिंचाई ही काफी होती है। पहली 40 दिन बाद व दूसरी जब पेड़ की टहनियां व पत्ते पीले पड़ने लगे, अधिक सिंचाई से इसमें फलियां कम लगती हैं।
  4. बुवाई:- खरीफ की फसल काटने के बाद पहले एक-दो जुताई कर लें व इसके दानों को बो दें। अक्टूबर के पहले सप्ताह से इसकी बुआई शुरू हो जाती है। पहली फसल में  रोग ज्यादा लगते हैं व उत्पादन कम होता है। मध्य फसल उत्पादन के हिसाब से ठीक रहती है।
  5. बीज की मात्रा:- 40 से 50 किलो प्रति हैक्टर के हिसाब से बीज डाला जाता है। बीज हल द्वारा व चुभाई कर के बोया जाता है। जिसमें दो-तीन दाने एक जगह ठोक रहते हैं। इसके पौधे में लाईन से लाईन 30 से.मी. व पौधे से पौधे 40 से.मी. की दूरी पर बोये जाने चाहिए।
  6. निराई-गुड़ाई:- इसमें निराई गुड़ाई की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती है। जहां वर्ष में तीन फसलें ली जाती हैं, निराइ गुड़ाई की अति आवश्यकता होती है क्योंकि खरपतवार पौधे की तन्तुओं से चिपकते हैं और पौधे गिर जाते हैं।
  7. कटाई:- इसके पौधों को भी उखाड़ लिया जाता है तथा अलग-अलग सुखाकर इकट्ठा किया जाता है। जानवरों द्वारा इसके भी दाने को निकाला जाता है क्योंकि मशीन से दाने फूटने का डर रहता है। अब ज्यादातर लोग मशीन द्वारा ही निकाल लेते हैं।
  8. शेष अवशेषों का उपयोग :- शेष भाग भेड़, बकरी आदि के चारे के काम आता है व खाद बनाने के काम में लिया जाता है।
  9. उत्पादन:- इसकी फलियां तोड़ कर बाजार जाती है जो सब्जी के काम आती है। 10 क्विटंल प्रति बीघा तक हरी फसल होती है। पकाकर दाने निकालने पर 30 से 40 क्विंटल प्रति हैक्टर तक इसका उत्पादन होता है।
  10.  बाजार भाव:- सूखे दाने चने की तुलना में ज्यादा भाव में बिकते हैं तथा सब्जी के रूप में बेचने पर अच्छी दामों की आमदनी होती है। आजकल हरा दाना छाया में सुखाकर ऊंचे दामों में बेचते हैं।
  11. निर्यात:- इसकी दाल बनाकर व मटर के पॉकेट बनाकर बाहर देशों में निर्यात किया जाता है। इसकी मिठाई नहीं बनाई जाती है।

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