मूंग को श्रेष्ठ माना गया है, हरे मूंग को विवाह, त्योहार, पूजा-पाठ व सभी सामाजिक कार्यों में काम में लिया जाता है। इसकी दाल भी सबसे श्रेष्ठ मानी जाती है। इसका रंग हरा सुनहरी व दाना छोटा गोल होता है। वैसे मूंग की उत्पत्ति का स्थान भारत ही है, उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश आदि प्रान्तों में अधिकतम उत्पादन होता है। बाकी भारत में सभी जगह उत्पादन होता है।
- मिट्टी :- इसकी खेती के लिए रेतीली मिट्टी जो नदियों द्वारा बहाकर लाई जाती है, अधिक उपयुक्त होती है।
- खाद:- इसकी खेती में खाद की ज्यादा आवश्यकता नहीं होती। फसल चक्र में पूर्व में बोई गई की फसल में अच्छा खाद डाला गया हो तो इसकी फसल अच्छी होती है।
- सिंचाई:- इसकी खेती वर्षा ऋतु में होती है। अत: वर्षा का पानी ही इसके लिए उपयुक्त है। अगर वर्षा समय पर न हो तो फूल आते समय ही एक सिंचाई कर दें।
- बुवाई का समय:- इसकी बुवाई का समय जून से जुलाई तक होता है। जून की फसल में अगर सितम्बर में वर्षा होती है तब फसल खराब होने का खतरा बना रहता है।
- बीज की मात्रा – इसमें 20 कि. ग्राम प्रति हैक्टर के हिसाब से बीज डाला जाता है। अधिक बीज डालने पर पौधे घने हो जाते हैं जिससे फल नहीं बैठ पाता है। पौधे से पौधे 2 फिट की दूरी पर होना चाहिए।
हाथ पुराणी बाजरा
मेढ़क फुदक ज्वार
हाली चतरक जाण्जे
मूंग दुरया डाल
- निराई गुड़ाई – इसमें निराई गुड़ाई की आवश्यकता नहीं होती है। फिर भी एक बार निराई गुड़ाई कर दी जाये तो फसल ठीक रहती है।
- कटाई छंटाई – इसके पौधे को उखाड़ कर सुखा लेते हैं। सूखने पर झाड़कर दाने अलग कर लेते हैं व शेष चारा के रूप में काम आता है।
- बाजार भाव – मूंग की खेती बहुत ही लाभदायक होती है। इसके भाव भी अच्छे रहते हैं। दलहन में सबसे ज्यादा कीमती दाल बनती है।
- आयात- आयात नहीं होता है व भण्डारण कर ज्यादा समय तक न रोकें।
- निर्यात – भारत से मूंग व दाल का निर्यात किया जाता है, जिससे विदेशी मुद्रा प्राप्त होती है। दाल के बाद छिलका पशु आहार के काम आता है।